आसमान





आसमान







आसमान




 शून्य, व्योम, गगन, अम्बर, प्यारे इसके नाम।
सूरज, चंदा, ग्रह, तारों का घर और है इनका धाम।।
जग में छतरी बन फैला, आदि न अनंत कहीं पर भी।
बरषा-रानी को सम्बल देकर, चंद बूँदें छिड़क देता जमीं पर भी।।
खगवृन्द झूमते गाते, देखो, उड़ते जाते इधर-उधर।
मानव-मन भी चकमा खाते, देखें नभ को टुकुर-टुकुर।।
कृत्रिम-उपग्रहों को देता आश्रय, और चमत्कार दिखाता है।
उल्का-पिण्डों को ऊपर ही अक्सर, मारकर खाता है।।
विद्युत, चंचला, चपला, बादल की बेटी कहलाती।
अंतरिक्ष-दादा का हरदम, भरसक दुलार है पाती।।
नील-परिधान पहने अधिकतर, मानव-मन को रिझाता है।
रक्तिम-वस्त्र पहन निकलता जब, भूरि-भूरि प्रशंसा पाता है।।
आसमान की बाहें जगत में फैलीं, पार कोई क्यों न पाया है?
"निश्छल" का जिज्ञासू-मन में भी बार-बार यही प्रश्न आया है।।


अनिल कुमार "निश्छल"
हमीरपुर (उ०प्र०

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