गम हो कितना भी
मगर मुस्कुराते रहो
जाम हँसी का लबों
को तुम पिलाते रहो
दुश्मन से भी अपने
तुम प्रेम से मिलो
टूट पड़े तुमपे जब
वो गले लगाते रहो
रस्ते पे मिल जाए
कभी बेसहारा कोई
देकर सहारा उसे तुम
इंसानियत बचाते रहो
दिल अजीज़ अपने ही
धोखे देते अक्सर
वक्त पड़े अक्सर इन्हें
आजमाते रहो
आँसुओं का समंदर भी
लगे जब जिंदगी
देख अपनों को हँसते
खुद को बहलाते रहो
दिल टूट जाए हो जाओ
जब कभी उदास
अपनों की खुशियों में
खुद को भी रमाते रहो
मुकर जाते अक्सर
करके वादे लोग यहाँ
तुम वादे वफ़ा का
हरदम निभाते रहो
रूठ जाए जब भी कोई यूँ
ही तुमसे
अपना समझ कभी तो
मनाते रहो
किस्मत ही सब नहीं श्रम
का भी अपना महत्व है
नित नया गुण खुद को
सिखाते रहो
माना कि रंज-ओ-गम
आते रहेंगें जिंदगी में
"निश्छल" वक्त को वक्त पर
वक्त से ही भुनाते रहो
अनिल कुमार
"निश्छल"
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