गीत





!!बोलो मीत हँसूँ तो कैसे.....!~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जिसने मुझको भुला दिया हो,उसको याद करूँ तो कैसे,
ख़ुशियाँ रूठ गईं जब सारी,बोलो मीत हँसूँ  तो कैसे..!!
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जीवन पथ के दोराहे पर आज खड़ा हूँ,
गहरे  कूप और खाई के  बीच अड़ा हूँ,
पतन अवश्यम्भावी लगता है,आगे और बढूँ तो कैसे.
ख़ुशियाँ रूठ गईं जब सारी,बोलो मीत हँसूँ तो कैसे!१!
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असहनीय पीड़ा से बोझिल है मन मेरा,
फैला चारों ओर  दूर तक  तमस  घनेरा,
क्रंदन माँ, बहनों का गूँजे,कोई गीत सुनूँ तो कैसे,
खुशियाँ रूठगईं जब सारी,बोलो मीत हँसूँ तो कैसे!२!
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कदम कदम पर छला गया हूँ मैं अपनों से,
आखें बन्द, हुआ वंचित स्वर्णिम सपनों से,
अपनों के ही छल से उपजा कष्ट असह्य सहूँ तो कैसे,
खुशियाँ रूठगईं जब सारी, बोलो मीत हँसूँ तो कैसे!३!
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सूना अंतस, विचलित हर विश्वास हो गया,
पतझड़ से भी सूना यह मधुमास  हो गया,
उजड़ा उजड़ा है मानस जब बन कर सुमन खिलूँ तो कैसे,
खुशियाँ रूठगयीं जब सारी,बोलो मीत हँसूँ तो कैसे!४!
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जीना है तो शत्रु-दमन करना ही होगा,
विजयी होने है यदि तो लड़ना ही होगा,
हार मान कर बीच राह में,आकर आज रुकूँ तो कैसे,
खुशियाँ रूठ गईं जब सारी,बोलो मीत हँसूँ तो कैसे!५!
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-- विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तर प्रदेश।
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