Majdur
बूँद-बूँद पसीने की जब
मिट्टी में मिल जाती है
चींख-चींख गगनचुम्बियां
श्रम आभास कराती हैं
रचनाकार बन जाता जब
ब्रम्ह आभास कराती हैं
भू में भूधर-सी इमारतें
गीत उन्हीं के गाती हैं
हरपल हरक्षण जो न हारे
मुफ़लिसी उसे हराती है
करता दो रोटी को कुछ भी
जान भी कभी चली जाती है
आओ मिलकर नमन करें
श्रम के सच्चे सिपाही को
स्वप्न है बस कोई भी काम
उसकी कमी खल जाती है
#1मई मजदूर दिवस/रचनाकार दिवस
की शुभकामनाएं
स्वरचित
®अनिल कुमार
'निश्छल'
बूँद-बूँद पसीने की जब
मिट्टी में मिल जाती है
चींख-चींख गगनचुम्बियां
श्रम आभास कराती हैं
रचनाकार बन जाता जब
ब्रम्ह आभास कराती हैं
भू में भूधर-सी इमारतें
गीत उन्हीं के गाती हैं
हरपल हरक्षण जो न हारे
मुफ़लिसी उसे हराती है
करता दो रोटी को कुछ भी
जान भी कभी चली जाती है
आओ मिलकर नमन करें
श्रम के सच्चे सिपाही को
स्वप्न है बस कोई भी काम
उसकी कमी खल जाती है
#1मई मजदूर दिवस/रचनाकार दिवस
की शुभकामनाएं
स्वरचित
®अनिल कुमार
'निश्छल'
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