तूँ और तुम्हारे चर्चे

आईना भी सूरत देखकर शरमाता होगा
दिन की रोशनी में भी धोखे खाता होगा
किसी बज़्म में जब आपकी मौजूदगी हो
तो हर शबाब फ़ीका पड़ जाता होगा
घेर लेते होंगें शहर के सारे दीवाने तुम्हें
जिस शै से मुस्करा के हाथ मिलाता होगा
पूँछते होंगें सब पता तेरे घर का तुझसे
धीरे-धीरे चाँद पर्दे से निकलकर आता होगा
शहर की गली-गली में तेरे चर्चे होंगें
घूँघट को खोल जब तूँ मुँह दिखाता होगा
इतनी शोहरत सुनी औ तेरे मुरीद हो गए
फ़रिश्ता आसमाँ से उतर तुझे मनाता होगा
चाँद तेरा दीदार करे दुबक जाये बार-बार
शबनमी सुबह में "निश्छल" नहाता होगा

अनिल कुमार "निश्छल"
हमीरपुर (उ०प्र०)

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