मुश्किलें न हरा पायेंगी







बनूँ परिंदा मैं भी इक दिन,इधर-उधर उड़ जाऊँ
धमाचौकड़ी खूब मचाकर,घूम-घूमकर आऊँ
हवा के ठंडे झोकों से,दो-दो मैं हाथ करूँ
खुले गगन में घूमूँ खुलके,जिससे चाहूँ बात करूँ
ऊँचे-ऊँचे शैलों को उड़कर,फिर मैं भी तो पार करूँ
आ जाऊँ फिर घर अपने,जब-जब थक मैं जाऊँ
अपने जज़्बे से फिर से, तूफ़ानों को पस्त करूँ
जिंदादिली को पाले रखके,जीवन अपना मस्त करूँ
मन को मज़बूत बनाकर,दिल अपने को दुरुस्त करूँ
साज-बाज संगीत बजा के,गीत विजय के गाऊँ
रखूँ हौंसला हरदम,कितनी भी मुश्किल आ जाए
और संतुलित रहकर, फिर मुश्किल की बैंड बजाएं
कितनी तगड़ी हो मुश्किल, जीत आदमी पाए
कदम बढ़ाकर "निश्छल'' फ़िर तो, हर मंजिल को पाऊँ
अनिल कुमार "निश्छल''

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