चल दिये




हमपे तोहमत लगा के चल दिये
अपने गाल   बजा के चल दिये

खूबियां गिनाते रहे ताउम्र मगर
कमबख्त हाथ छुड़ा के चल दिये

उनकी फ़ितरत से वाक़िफ़ नहीं थे
हमसे राज  छुपा के चल दिये

कुछ समझते वाकिये की दास्ताँ
मंद-मंद मुस्करा के चल दिये

समझते रहे हमें अपना सबकुछ
आज नज़रें बचा के चल दिये

अभी तक खूबियाँ ढूंढते थे हमपे
और अब खामियां बता के चले गए

नस-नस में ज़हर भरा है 'निश्छल'
और अब हमें तड़पा के चल दिये

अनिल कुमार निश्छल

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