मैं योगिराज क्यों?



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साहित्य आंगन परिवार के सभी महनीय हस्थाक्षरों को किराणों की दूकानों वाली कतार में लगी जीरा मसाले की दूकान के इस एक मात्र और महज एक छोटे से दोने "योगेश योगिराज" की तरफ से कोटी कोटी प्रणाम!!!

मित्रों किसी ने पूछा कि मैं योगेश कैसे हो गया??? मैं जवाब देता हूं----

गमों का ही जो खुद में समावेश कर लिया
ऐसा वैसा ही मैंने भी परिवेश कर लिया
बन ना सका जो मोहन तेरा तो,
तो राधे मैंने भी खुद को योगेश कर लिया।।।

तब लोगों ने पूछ लिया कि फिर योगिराज क्यों???

फूल रुपी मन जब शोले उगलने लगा
सावन सा मुझे ऋतुराज बनना पड़ा
काली चिड़िया जब काली भाषा बोलने लगी
पाली जैसी मीठी मुझे राग बनना पड़ा
गांधीवाद वाली शांति भाषा जब मानी नहीं
शेखर जैसी मुझे आवाज बनना पड़ा
और तर्क देता हूं कि योगिराज कैसे पंक्ति संभालना कि

यशोदा दुलारियों का होने लगा जब वध।
चक्र धार मुझे योगिराज बनना पड़ा।।

मित्रों मैं मैं मूलतः जहाजपुर भीलवाड़ा राजस्थान की धरती से हूं और मुझपर आरोप है कि हमने श्रवणकुमार की बुध्दि भ्रष्ट कर दी थी।। जो मुझ पर ये आरोप लगाते है उन्हें मेरा जवाब है.......

कर न पाए जो दूजा वो काम कर दिखाया है

ज़मीं से उठकर आसमां को घर बनाया है

माना भ्रष्टबुद्धि हूं ये आरोप तुम्हारा सच्चा है

पर भूल गए तुम हमने सांपों को जहर पिलाया है।।


धन्यवाद

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