वक्त को भुनाया करो

आशाओं का दिया जलाकर
कदम दर कदम बढ़ाया करो
गिरते सभी हैं कभी न कभी
जमीं से ख़ुद को उठाया करो

आएँ जिंदगी में कितने भी गम
तुम फिर भी मुस्कराया करो
तन्हा ले डूबेगी जिंदगी भी तुम्हें
महफ़िल में हमारी आ जाया करो

आते रहेंगें कितने मोड़ दर मोड़
रिश्तों को हरसू निभाया करो
आजमाने दो जमाने को तुम्हें
इस तरह शोहरत कमाया करो

माना कि कुछ कहते नहीं हम
कभी हमें भी आजमाया करो
अवसरों की कमीं नहीं जिंदगी में
कभी वक्त को भी भुनाया करो

मौलिक एवम् स्वरचित

@अनिल कुमार निश्छल

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