'परिवर्तन सतत है।'

खोटा सिक्का भी कभी चल जाता बाजार में
कुछ भी होना नहीं असंभव है इस संसार में

1. रंक भी राजा यहाँ पल में बन जाते हैं
कच्चे घर भी इमारतों में तन जाते हैं
आ जाता है परिवर्तन अपराधी के आचार में
कुछ भी होना नहीं असंभव......

2. निशि-दिन बाधाओं से जो घबराते हैं
वीर सदा ही वक्त पर मंजिल पा जाते हैं
नहीं जाया करते सज्जन कभी तकरार में
कुछ भी होना नहीं असंभव....

3.युवा आजके नशे की दलदल में फँस जाते हैं
एक समय ऐसा आता है नहीं निकल फिर पाते हैं
कश्ती जीवन की उनकी फँसती फिर मझधार में
कुछ भी होना नहीं असंभव....

4.चकाचौंध की दुनिया सब हरदम जीते हैं
रिश्तों की मधुरता से सब रीतें हैं
खट्टे-मीठे लगते हैं वृक्ष सभी फलदार में
कुछ भी होना नहीं असंभव....

5.मिट्टी का तन मिट्टी है सब मिट्टी सब माया
मोह कहाँ अपनों का छोड़ कोई है पाया
मिलता कहाँ सुकूँ जो मिलता परिवार में
कुछ भी होना नहीं असंभव...

6.खो गई रिश्तों की गरिमा और बहुत कुछ खोया है
साँसें कितनी आहें भरती दिल फूट-फूटकर रोया है
दोहरा मुखड़ा दिखता है अब हर एक किरदार में

कुछ भी होना नहीं असंभव ....

मौलिक एवम् स्वरचित
अनिल कुमार "निश्छल"
7458955275
akanil7194@gmail.com

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