मिलाते रहिये






दिल से दिल न मिले पर हाथ मिलाते रहिए
कुछ इस तरह भी रिश्तों को निभाते रहिए

खामोश रह जाते हैं कुछ लोग जिंदा होकर
देकर नेह उन्हें भी अपना बनाते रहिए 

खफ़ा हो जाए कोई गैर भी गर तुझसे 
ख़ुद ख़तावार बन अपने घर बुलाते रहिए 

चंद टुकड़े ही तो देने हैं कागज के तुम्हें
कुछ ऐसे भी इंसानियत को निभाते रहिए

बन्दा है ख़ुदा का फिर ख़ुदी से क्या डरना
सच्चाई पर चलिए ग़ैरों को बताते रहिए

आसां नहीं है अपनों से भी दूर रहना
ग़ैरों के भी घर कभी-कभी आते-जाते रहिए

जुबां से निकला शब्द कभी वापस नहीं होता "निश्छल"
वाणी में मधुरस मकरंद मिलाते रहिए

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