हमें मुल्क़ से अपने बेपनाह मुहब्बत है
सांझ सुबह दोपहर करते इबादत हैं
सांझ सुबह दोपहर करते इबादत हैं
होली ईद क्रिसमस जब जब आते हैं
मिलकर मानते हैं सब मिलने की आदत है
मिलकर मानते हैं सब मिलने की आदत है
कौमें कोई हों मगर लहू सबका एक है
इंसान बनने की अंतिम ही चाहत है
इंसान बनने की अंतिम ही चाहत है
उस बनाने वाले ने एक जैसा है बनाया
आपस में लड़कर करते उसे आहत हैं
आपस में लड़कर करते उसे आहत हैं
जाति, धर्म,मज़हब में हम हैं बंटे हुए
करते जो भेद हों हमें उनपे लानत है
करते जो भेद हों हमें उनपे लानत है
नेह भाईचारे की चली आयी रीति सनातन
मगर आज देखो फैलाते बस नफ़रत हैं
मगर आज देखो फैलाते बस नफ़रत हैं
मिलजुल रहें मेल मिलाप रहे सदा 'निश्छल'
चलो जहरीली बयार में गढ़ते नयी इबारत हैं
चलो जहरीली बयार में गढ़ते नयी इबारत हैं
अनिल कुमार "निश्छल"
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