कुछ तो है

कुछ तो है
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देखते ही उसे क्या होता है हमें,
थम जाते हैं कदम कुछ तो है।

हँसी भी है उसकी क्या कमाल,
कत्ल करती है हमें कुछ तो है।

आफ़ताब भी देख उसे शरमाए
जाऊं उसपे निहाल कुछ तो है

क्या गजब नक्कासी की रब ने
दिल है मेरा निढाल कुछ तो है

कहने हैं सारे दिल के अरमां
उन्हें देख चुप ही हूँ कुछ तो है

ये जो है सब उस-सा ही हसीं है
करम सब उसका है कुछ तो है

अनिल कुमार
"निश्छल"

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