जिसका हक उसको नहीं






गरीबों का  हक़ मारा जा रहा है
किस डगर देश हमारा जा रहा है

चाभियाँ अमीरों  को सौंप रहे हैं
मुफ़लिसों का घर सारा जा रहा है

नाम की रह गयीं सारी योजनाएं
दफ्तरों से हर-बार टारा जा रहा है

चमक दिखती  केवल उनके घरों में
सड़क पे कवेल नाम  डारा जा रहा है

पानी,बिजली,बेरोज़गारी समस्या बड़ी
देश-विरोधी लगवाया  नारा जा रहा है

राजसी-ठाठ-बाट से रहते हैं नेता सभी
आम आदमी रह-रह बेचारा जा रहा है

वोट लेते सभी मिलते हैं बमुश्किल कभी
इस तरह एहसान को उतारा जा रहा है

हिन्दू-मुस्लिम करके हैं   रंगों में बाँटते
आदमी को आदमी से निबारा जा रहा है

ये रंग मज़हबी हैं रोटियाँ नहीं देते कभी
है जाल देशभक्ति का पसारा जा रहा है


ख़ुद घर हैं भरते हमसे कहते काबिल नहीं
आम आदमी रसूखदारों से हारा जा रहा है


देश की आन,बान, शान सब है "निश्छल"
है जाबांजों के द्वारा ही सँवारा जा रहा है

अनिल कुमार निश्छल

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2 Comments

Gyaan Gaanv said…
लाजवाब
Gyaan Gaanv said…
जै हो!!!कमाल!!!!बेमिशाल!!!